चौपाई
 एहि बिधि बेगि सूभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु।। 
 मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई।।
 पुनि सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोहि न लाजा।। 
 मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती।।
 रे त्रिय चोर कुमारग गामी। खल मल रासि मंदमति कामी।। 
 सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा।।
 याको फलु पावहिगो आगें। बानर भालु चपेटन्हि लागें।। 
 रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी।।
 गिरिहहिं रसना संसय नाहीं। सिरन्हि समेत समर महि माहीं।।
दोहा/सोरठा
सो नर क्यों दसकंध बालि बध्यो जेहिं एक सर। 
 बीसहुँ लोचन अंध धिग तव जन्म कुजाति जड़।।33(क)।।
 तब सोनित की प्यास तृषित राम सायक निकर। 
 तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम।।33(ख)।।
