चौपाई
 जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला।। 
 कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू।।
 सभा माझ जेहिं तव बल मथा। करि बरूथ महुँ मृगपति जथा।। 
 अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे बीर अति बाँके।।
 तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू। मुधा मान ममता मद बहहू।। 
 अहह कंत कृत राम बिरोधा। काल बिबस मन उपज न बोधा।।
 काल दंड गहि काहु न मारा। हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा।। 
 निकट काल जेहि आवत साईं। तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाईं।।
दोहा/सोरठा
दुइ सुत मरे दहेउ पुर अजहुँ पूर पिय देहु। 
 कृपासिंधु रघुनाथ भजि नाथ बिमल जसु लेहु।।37।।
