चौपाई
 नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना।। 
 बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली।।
 इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा।। 
 अति आदर सपीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी।।
 बालितनय कौतुक अति मोही। तात सत्य कहु पूछउँ तोही।।। 
 रावनु जातुधान कुल टीका। भुज बल अतुल जासु जग लीका।।
 तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए।। 
 सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप गुन चारी।।
 साम दान अरु दंड बिभेदा। नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा।। 
 नीति धर्म के चरन सुहाए। अस जियँ जानि नाथ पहिं आए।।
दोहा/सोरठा
धर्महीन प्रभु पद बिमुख काल बिबस दससीस। 
 तेहि परिहरि गुन आए सुनहु कोसलाधीस।।38(((क)।।
 परम चतुरता श्रवन सुनि बिहँसे रामु उदार। 
 समाचार पुनि सब कहे गढ़ के बालिकुमार।।38(ख)।।
