चौपाई
 रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए।। 
 लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा।।
 तब कपीस रिच्छेस बिभीषन। सुमिरि हृदयँ दिनकर कुल भूषन।। 
 करि बिचार तिन्ह मंत्र दृढ़ावा। चारि अनी कपि कटकु बनावा।।
 जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे।। 
 प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए।।
 हरषित राम चरन सिर नावहिं। गहि गिरि सिखर बीर सब धावहिं।। 
 गर्जहिं तर्जहिं भालु कपीसा। जय रघुबीर कोसलाधीसा।।
 जानत परम दुर्ग अति लंका। प्रभु प्रताप कपि चले असंका।। 
 घटाटोप करि चहुँ दिसि घेरी। मुखहिं निसान बजावहीं भेरी।।
दोहा/सोरठा
जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव। 
 गर्जहिं सिंघनाद कपि भालु महा बल सींव।।39।।
