चौपाई
 लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी।। 
 देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई।।
 आए कीस काल के प्रेरे। छुधावंत सब निसिचर मेरे।। 
 अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा। गृह बैठे अहार बिधि दीन्हा।।
 सुभट सकल चारिहुँ दिसि जाहू। धरि धरि भालु कीस सब खाहू।। 
 उमा रावनहि अस अभिमाना। जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना।।
 चले निसाचर आयसु मागी। गहि कर भिंडिपाल बर साँगी।। 
 तोमर मुग्दर परसु प्रचंडा। सुल कृपान परिघ गिरिखंडा।।
 जिमि अरुनोपल निकर निहारी। धावहिं सठ खग मांस अहारी।। 
 चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा। तिमि धाए मनुजाद अबूझा।।
दोहा/सोरठा
नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर। 
 कोट कँगूरन्हि चढ़ि गए कोटि कोटि रनधीर।।40।।
