चौपाई
 महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं।। 
 कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा।।
 खल मनुजाद द्विजामिष भोगी। पावहिं गति जो जाचत जोगी।। 
 उमा राम मृदुचित करुनाकर। बयर भाव सुमिरत मोहि निसिचर।।
 देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी।। 
 अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी।।
 अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा।। 
 लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहि सिंधु दुइ मंदर जैसें।।
दोहा/सोरठा
भुज बल रिपु दल दलमलि देखि दिवस कर अंत। 
 कूदे जुगल बिगत श्रम आए जहँ भगवंत।।45।।
