चौपाई
 कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोक बिख्याता।। 
 कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अंगद हनूमंत बल सींवा।।
 कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही। आजु सबहि हठि मारउँ ओही।। 
 अस कहि कठिन बान संधाने। अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने।।
 सर समुह सो छाड़ै लागा। जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा।। 
 जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर। सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर।।
 जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा। बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा।। 
 सो कपि भालु न रन महँ देखा। कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा।।
दोहा/सोरठा
दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर। 
 सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर।।50।।
