1.6.51

चौपाई
देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला।।
महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा।।
आवत देखि गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई।।
बार बार पचार हनुमाना। निकट न आव मरमु सो जाना।।
रघुपति निकट गयउ घननादा। नाना भाँति करेसि दुर्बादा।।
अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे। कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे।।
देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना। करै लाग माया बिधि नाना।।
जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला। डरपावै गहि स्वल्प सपेला।।

दोहा/सोरठा
जासु प्रबल माया बल सिव बिरंचि बड़ छोट।
ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट।।51।।

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