चौपाई
 सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू। जारइ भुवन चारिदस आसू।। 
 सक संग्राम जीति को ताही। सेवहिं सुर नर अग जग जाही।।
 यह कौतूहल जानइ सोई। जा पर कृपा राम कै होई।। 
 संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी। लगे सँभारन निज निज अनी।।
 ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर। लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर।। 
 तब लगि लै आयउ हनुमाना। अनुज देखि प्रभु अति दुख माना।।
 जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहइ को पठई लेना।। 
 धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता।।
दोहा/सोरठा
राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन। 
 कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन।।55।।
