चौपाई
 बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्रैलोक बिभूषन।। 
 नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा।।
 एतना कपिन्ह सुना जब काना। किलकिलाइ धाए बलवाना।। 
 लिए उठाइ बिटप अरु भूधर। कटकटाइ डारहिं ता ऊपर।।
 कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा।। 
 मुर् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो।।
 तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। पर् यो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो।। 
 पुनि उठि तेहिं मारेउ हनुमंता। घुर्मित भूतल परेउ तुरंता।।
 पुनि नल नीलहि अवनि पछारेसि। जहँ तहँ पटकि पटकि भट डारेसि।। 
 चली बलीमुख सेन पराई। अति भय त्रसित न कोउ समुहाई।।
दोहा/सोरठा
अंगदादि कपि मुरुछित करि समेत सुग्रीव। 
 काँख दाबि कपिराज कहुँ चला अमित बल सींव।।65।।
