1.6.91

चौपाई
कहि दुर्बचन क्रुद्ध दसकंधर। कुलिस समान लाग छाँड़ै सर।।
नानाकार सिलीमुख धाए। दिसि अरु बिदिस गगन महि छाए।।
पावक सर छाँड़ेउ रघुबीरा। छन महुँ जरे निसाचर तीरा।।
छाड़िसि तीब्र सक्ति खिसिआई। बान संग प्रभु फेरि चलाई।।
कोटिक चक्र त्रिसूल पबारै। बिनु प्रयास प्रभु काटि निवारै।।
निफल होहिं रावन सर कैसें। खल के सकल मनोरथ जैसें।।
तब सत बान सारथी मारेसि। परेउ भूमि जय राम पुकारेसि।।
राम कृपा करि सूत उठावा। तब प्रभु परम क्रोध कहुँ पावा।।

छंद
भए क्रुद्ध जुद्ध बिरुद्ध रघुपति त्रोन सायक कसमसे।
कोदंड धुनि अति चंड सुनि मनुजाद सब मारुत ग्रसे।।
मँदोदरी उर कंप कंपति कमठ भू भूधर त्रसे।
चिक्करहिं दिग्गज दसन गहि महि देखि कौतुक सुर हँसे।।

दोहा/सोरठा
तानेउ चाप श्रवन लगि छाँड़े बिसिख कराल।
राम मारगन गन चले लहलहात जनु ब्याल।।91।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: