ayodhyakaanda

1.2.224

चौपाई
निज गुन सहित राम गुन गाथा। सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा।।
तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा। निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा।।
मनहीं मन मागहिं बरु एहू। सीय राम पद पदुम सनेहू।।
मिलहिं किरात कोल बनबासी। बैखानस बटु जती उदासी।।
करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही। केहि बन लखनु रामु बैदेही।।
ते प्रभु समाचार सब कहहीं। भरतहि देखि जनम फलु लहहीं।।
जे जन कहहिं कुसल हम देखे। ते प्रिय राम लखन सम लेखे।।
एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी। सुनत राम बनबास कहानी।।

दोहा/सोरठा

1.2.223

चौपाई
भायप भगति भरत आचरनू। कहत सुनत दुख दूषन हरनू।।
जो कछु कहब थोर सखि सोई। राम बंधु अस काहे न होई।।
हम सब सानुज भरतहि देखें। भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें।।
सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं। कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं।।
कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन। बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन।।
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी। लघु तिय कुल करतूति मलीनी।।
बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा। कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा।।
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा। जनु मरुभूमि कलपतरु जामा।।

दोहा/सोरठा

1.2.222

चौपाई
कहहिं सपेम एक एक पाहीं। रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं।।
बय बपु बरन रूप सोइ आली। सीलु सनेहु सरिस सम चाली।।
बेषु न सो सखि सीय न संगा। आगें अनी चली चतुरंगा।।
नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा। सखि संदेहु होइ एहिं भेदा।।
तासु तरक तियगन मन मानी। कहहिं सकल तेहि सम न सयानी।।
तेहि सराहि बानी फुरि पूजी। बोली मधुर बचन तिय दूजी।।
कहि सपेम सब कथाप्रसंगू। जेहि बिधि राम राज रस भंगू।।
भरतहि बहुरि सराहन लागी। सील सनेह सुभाय सुभागी।।

दोहा/सोरठा

1.2.221

चौपाई
जमुन तीर तेहि दिन करि बासू। भयउ समय सम सबहि सुपासू।।
रातहिं घाट घाट की तरनी। आईं अगनित जाहिं न बरनी।।
प्रात पार भए एकहि खेंवाँ। तोषे रामसखा की सेवाँ।।
चले नहाइ नदिहि सिर नाई। साथ निषादनाथ दोउ भाई।।
आगें मुनिबर बाहन आछें। राजसमाज जाइ सबु पाछें।।
तेहिं पाछें दोउ बंधु पयादें। भूषन बसन बेष सुठि सादें।।
सेवक सुह्रद सचिवसुत साथा। सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा।।
जहँ जहँ राम बास बिश्रामा। तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा।।

दोहा/सोरठा

1.2.220

चौपाई
सत्यसंध प्रभु सुर हितकारी। भरत राम आयस अनुसारी।।
स्वारथ बिबस बिकल तुम्ह होहू। भरत दोसु नहिं राउर मोहू।।
सुनि सुरबर सुरगुर बर बानी। भा प्रमोदु मन मिटी गलानी।।
बरषि प्रसून हरषि सुरराऊ। लगे सराहन भरत सुभाऊ।।
एहि बिधि भरत चले मग जाहीं। दसा देखि मुनि सिद्ध सिहाहीं।।
जबहिं रामु कहि लेहिं उसासा। उमगत पेमु मनहँ चहु पासा।।
द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना। पुरजन पेमु न जाइ बखाना।।
बीच बास करि जमुनहिं आए। निरखि नीरु लोचन जल छाए।।

दोहा/सोरठा

1.2.219

चौपाई
सुनु सुरेस उपदेसु हमारा। रामहि सेवकु परम पिआरा।।
मानत सुखु सेवक सेवकाई। सेवक बैर बैरु अधिकाई।।
जद्यपि सम नहिं राग न रोषू। गहहिं न पाप पूनु गुन दोषू।।
करम प्रधान बिस्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा।।
तदपि करहिं सम बिषम बिहारा। भगत अभगत हृदय अनुसारा।।
अगुन अलेप अमान एकरस। रामु सगुन भए भगत पेम बस।।
राम सदा सेवक रुचि राखी। बेद पुरान साधु सुर साखी।।
अस जियँ जानि तजहु कुटिलाई। करहु भरत पद प्रीति सुहाई।।

दोहा/सोरठा

1.2.218

चौपाई
बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने। सहसनयन बिनु लोचन जाने।।
मायापति सेवक सन माया। करइ त उलटि परइ सुरराया।।
तब किछु कीन्ह राम रुख जानी। अब कुचालि करि होइहि हानी।।
सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ।।
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई।।
लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा। यह महिमा जानहिं दुरबासा।।
भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम रामु जप जेही।।

दोहा/सोरठा
मनहुँ न आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु।

1.2.217

चौपाई
जड़ चेतन मग जीव घनेरे। जे चितए प्रभु जिन्ह प्रभु हेरे।।
ते सब भए परम पद जोगू। भरत दरस मेटा भव रोगू।।
यह बड़ि बात भरत कइ नाहीं। सुमिरत जिनहि रामु मन माहीं।।
बारक राम कहत जग जेऊ। होत तरन तारन नर तेऊ।।
भरतु राम प्रिय पुनि लघु भ्राता। कस न होइ मगु मंगलदाता।।
सिद्ध साधु मुनिबर अस कहहीं। भरतहि निरखि हरषु हियँ लहहीं।।
देखि प्रभाउ सुरेसहि सोचू। जगु भल भलेहि पोच कहुँ पोचू।।
गुर सन कहेउ करिअ प्रभु सोई। रामहि भरतहि भेंट न होई।।

दोहा/सोरठा

1.2.216

चौपाई
कीन्ह निमज्जनु तीरथराजा। नाइ मुनिहि सिरु सहित समाजा।।
रिषि आयसु असीस सिर राखी। करि दंडवत बिनय बहु भाषी।।
पथ गति कुसल साथ सब लीन्हे। चले चित्रकूटहिं चितु दीन्हें।।
रामसखा कर दीन्हें लागू। चलत देह धरि जनु अनुरागू।।
नहिं पद त्रान सीस नहिं छाया। पेमु नेमु ब्रतु धरमु अमाया।।
लखन राम सिय पंथ कहानी। पूँछत सखहि कहत मृदु बानी।।
राम बास थल बिटप बिलोकें। उर अनुराग रहत नहिं रोकैं।।
दैखि दसा सुर बरिसहिं फूला। भइ मृदु महि मगु मंगल मूला।।

दोहा/सोरठा

1.2.215

चौपाई
मुनि प्रभाउ जब भरत बिलोका। सब लघु लगे लोकपति लोका।।
सुख समाजु नहिं जाइ बखानी। देखत बिरति बिसारहीं ग्यानी।।
आसन सयन सुबसन बिताना। बन बाटिका बिहग मृग नाना।।
सुरभि फूल फल अमिअ समाना। बिमल जलासय बिबिध बिधाना।
असन पान सुच अमिअ अमी से। देखि लोग सकुचात जमी से।।
सुर सुरभी सुरतरु सबही कें। लखि अभिलाषु सुरेस सची कें।।
रितु बसंत बह त्रिबिध बयारी। सब कहँ सुलभ पदारथ चारी।।
स्त्रक चंदन बनितादिक भोगा। देखि हरष बिसमय बस लोगा।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - ayodhyakaanda