चौपाई
 सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता।। 
 धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता।।
 नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना।। 
 सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा।।
 धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी।। 
 धन्य सो भूपु नीति जो करई। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई।।
 सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी।। 
 धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।
दोहा/सोरठा
सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।  
    श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत।।127।।
