चौपाई
 सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे।। 
 नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं।।
 बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं।। 
 दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ।।
 मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे।। 
 नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी।।
 करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि मोहू।। 
 अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी।।
 दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि जाती।। 
 रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई।।
दोहा/सोरठा
राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु। 
 जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु।।360।।
