चौपाई
 जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।। 
 भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।
 रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।। 
 मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।
 कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।। 
 सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।
 मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।। 
 राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।
दोहा/सोरठा
सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु। 
 आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।1।।
