चौपाई
 भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।। 
 सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा।।
 मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।। 
 राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो।।
 लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती।। 
 गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर।।
 सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी।। 
 साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला।।
 सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी।। 
 यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ।।
 रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें।।
दोहा/सोरठा
सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु। 
 उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु।।28(क)।।
 हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास। 
 साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास।।28(ख)।।
