चौपाई
 तात जाउँ बलि बेगि नहाहू। जो मन भाव मधुर कछु खाहू।। 
 पितु समीप तब जाएहु भैआ। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैआ।।
 मातु बचन सुनि अति अनुकूला। जनु सनेह सुरतरु के फूला।। 
 सुख मकरंद भरे श्रियमूला। निरखि राम मनु भवरुँ न भूला।।
 धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी।। 
 पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू।।
 आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता।। 
 जनि सनेह बस डरपसि भोरें। आनँदु अंब अनुग्रह तोरें।।
दोहा/सोरठा
बरष चारिदस बिपिन बसि करि पितु बचन प्रमान। 
 आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु जनि करसि मलान।।53।।
