चौपाई
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। 
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।।
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।। 
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी।।
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।। 
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।।
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।। 
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि।।
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि।। 
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी।।
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी।। 
 रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी।।
 सिवप्रय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी।। 
 सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी।।
दोहा/सोरठा
 राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु। 
 तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु।।31।।
