चौपाई
 कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी।। 
 सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथाप्रबंध बिचित्र बनाई।।
 जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई।। 
 कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी।।
 रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं।। 
 नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।।
 कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए।। 
 करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सारद रति मानी।।
दोहा/सोरठा
राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार। 
 सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार।।33।।
