चौपाई
 सखा समुझि अस परिहरि मोहु। सिय रघुबीर चरन रत होहू।। 
 कहत राम गुन भा भिनुसारा। जागे जग मंगल सुखदारा।।
 सकल सोच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा।। 
 अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए।।
 हृदयँ दाहु अति बदन मलीना। कह कर जोरि बचन अति दीना।। 
 नाथ कहेउ अस कोसलनाथा। लै रथु जाहु राम कें साथा।।
 बनु देखाइ सुरसरि अन्हवाई। आनेहु फेरि बेगि दोउ भाई।। 
 लखनु रामु सिय आनेहु फेरी। संसय सकल सँकोच निबेरी।।
दोहा/सोरठा
नृप अस कहेउ गोसाईं जस कहइ करौं बलि सोइ। 
 करि बिनती पायन्ह परेउ दीन्ह बाल जिमि रोइ।।94।।
