चौपाई
 संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी।। 
 करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी।।
 सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू।। 
 बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी।।
 लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी।। 
 प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई।।
 सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई।। 
 मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन।।
 भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना।।
दोहा/सोरठा
सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि। 
 तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि।।36।।
