चौपाई
 एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी।। 
 बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी।।
 राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे।। 
 जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही। सनमुख संकर आसनु दीन्हा।।
 लगे कहन हरिकथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला।। 
 देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक।।
 बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिमानु हृदयँ तब आवा।। 
 नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।
दोहा/सोरठा
 दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग। 
 नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग।।60।।
