चौपाई
 जौ अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई।। 
 कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।।
 सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमूख श्रुति संत बिरोधी।। 
 तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह प्रानी।।
 अस बिचारि खल बधउँ न तोही। अब जनि रिस उपजावसि मोही।। 
 सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा।।
 रे कपि अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बड़ि कहसी।। 
 कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें।।
दोहा/सोरठा
अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास। 
 सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास।।31(क)।।
 जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि अइसे मनुज अनेक। 
 खाहीं निसाचर दिवस निसि मूढ़ समुझु तजि टेक।।31(ख)।।
