चौपाई
 राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा।। 
 चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर।।
 चले निसाचर निकर पराई। प्रबल पवन जिमि घन समुदाई।। 
 हाहाकार भयउ पुर भारी। रोवहिं बालक आतुर नारी।।
 सब मिलि देहिं रावनहि गारी। राज करत एहिं मृत्यु हँकारी।। 
 निज दल बिचल सुनी तेहिं काना। फेरि सुभट लंकेस रिसाना।।
 जो रन बिमुख सुना मैं काना। सो मैं हतब कराल कृपाना।। 
 सर्बसु खाइ भोग करि नाना। समर भूमि भए बल्लभ प्राना।।
 उग्र बचन सुनि सकल डेराने। चले क्रोध करि सुभट लजाने।। 
 सन्मुख मरन बीर कै सोभा। तब तिन्ह तजा प्रान कर लोभा।।
दोहा/सोरठा
बहु आयुध धर सुभट सब भिरहिं पचारि पचारि। 
 ब्याकुल किए भालु कपि परिघ त्रिसूलन्हि मारी।।42।।
