चौपाई
 भय आतुर कपि भागन लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे।। 
 कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता।।
 निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना।। 
 मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई।।
 पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा।। 
 कूदि लंक गढ़ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा।।
 भंजेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता।। 
 दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यंदन घालि तुरत गृह आना।।
दोहा/सोरठा
अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल। 
 रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल।।43।।
