चौपाई
 राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजन सुत बल भाषी।। 
 उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावन कालनेमि गृह आवा।।
 दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना। पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना।। 
 देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा।।
 भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना।। 
 नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा।।
 मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू। महा मोह निसि सूतत जागू।। 
 काल ब्याल कर भच्छक जोई। सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई।।
दोहा/सोरठा
सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार। 
 राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार।।56।।
