चौपाई
 परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक।। 
 सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए।।
 बिकल बिलोकि कीस उर लावा। जागत नहिं बहु भाँति जगावा।। 
 मुख मलीन मन भए दुखारी। कहत बचन भरि लोचन बारी।।
 जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा। तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा।। 
 जौं मोरें मन बच अरु काया। प्रीति राम पद कमल अमाया।।
 तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला। जौं मो पर रघुपति अनुकूला।। 
 सुनत बचन उठि बैठ कपीसा। कहि जय जयति कोसलाधीसा।।
दोहा/सोरठा
लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल। 
 प्रीति न हृदयँ समाइ सुमिरि राम रघुकुल तिलक।।59।।
