चौपाई
 रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 
 अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
 नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।। 
 सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।
 सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।। 
 बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
 ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।। 
 दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।
 अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।। 
 कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।
 सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।
दोहा/सोरठा
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर। 
 जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।80(क)।।
 सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज। 
 एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज।।80(ख)।।
 उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान। 
 लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन।।80(ग)।।
