1.6.86

चौपाई
चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर।।
भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना।।
चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा।।
प्रभु सन्मुख धाए खल कैंसें। सलभ समूह अनल कहँ जैंसें।।
इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही।।
अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही।।
देव बचन सुनि प्रभु मुसकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना।
जटा जूट दृढ़ बाँधै माथे। सोहहिं सुमन बीच बिच गाथे।।
अरुन नयन बारिद तनु स्यामा। अखिल लोक लोचनाभिरामा।।
कटितट परिकर कस्यो निषंगा। कर कोदंड कठिन सारंगा।।

छंद
सारंग कर सुंदर निषंग सिलीमुखाकर कटि कस्यो।
भुजदंड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लस्यो।।
कह दास तुलसी जबहिं प्रभु सर चाप कर फेरन लगे।
ब्रह्मांड दिग्गज कमठ अहि महि सिंधु भूधर डगमगे।।

दोहा/सोरठा
सोभा देखि हरषि सुर बरषहिं सुमन अपार।
जय जय जय करुनानिधि छबि बल गुन आगार।।86।।

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