चौपाई
 मज्जहि भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला।। 
 काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं।।
 एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई। सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई।। 
 कहँरत भट घायल तट गिरे। जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे।।
 खैंचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए।। 
 बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं।।
 जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं। भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं।। 
 भट कपाल करताल बजावहिं। चामुंडा नाना बिधि गावहिं।।
 जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं।। 
 कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं। सीस परे महि जय जय बोल्लहिं।।
छंद
बोल्लहिं जो जय जय मुंड रुंड प्रचंड सिर बिनु धावहीं।  
    खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं सुभट भटन्ह ढहावहीं।।
  बानर निसाचर निकर मर्दहिं राम बल दर्पित भए।  
    संग्राम अंगन सुभट सोवहिं राम सर निकरन्हि हए।।
दोहा/सोरठा
रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार।  
    मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार।।88।।
