चौपाई
 पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना।। 
 समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु।।
 तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरी निसाचर धाए।। 
 बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही।।
 दूरहि ते प्रनाम कपि कीन्हा। रघुपति दूत जानकीं चीन्हा।। 
 कहहु तात प्रभु कृपानिकेता। कुसल अनुज कपि सेन समेता।।
 सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा।। 
 अबिचल राजु बिभीषन पायो। सुनि कपि बचन हरष उर छायो।।
छंद
अति हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुनि पुनि रमा।  
    का देउँ तोहि त्रेलोक महुँ कपि किमपि नहिं बानी समा।।
  सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं।  
    रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं।।
दोहा/सोरठा
सुनु सुत सदगुन सकल तव हृदयँ बसहुँ हनुमंत।  
    सानुकूल कोसलपति रहहुँ समेत अनंत।।107।।
