90

3.2.90

चौपाई
ઉઠે લખનુ પ્રભુ સોવત જાની। કહિ સચિવહિ સોવન મૃદુ બાની।।
કછુક દૂર સજિ બાન સરાસન। જાગન લગે બૈઠિ બીરાસન।।
ગુ બોલાઇ પાહરૂ પ્રતીતી। ઠાવઠા રાખે અતિ પ્રીતી।।
આપુ લખન પહિં બૈઠેઉ જાઈ। કટિ ભાથી સર ચાપ ચઢ઼ાઈ।।
સોવત પ્રભુહિ નિહારિ નિષાદૂ। ભયઉ પ્રેમ બસ હ્દયબિષાદૂ।।
તનુ પુલકિત જલુ લોચન બહઈ। બચન સપ્રેમ લખન સન કહઈ।।
ભૂપતિ ભવન સુભાયસુહાવા। સુરપતિ સદનુ ન પટતર પાવા।।
મનિમય રચિત ચારુ ચૌબારે। જનુ રતિપતિ નિજ હાથ સારે।।

3.1.90

चौपाई
સુનિ બોલીં મુસકાઇ ભવાની। ઉચિત કહેહુ મુનિબર બિગ્યાની।।
તુમ્હરેં જાન કામુ અબ જારા। અબ લગિ સંભુ રહે સબિકારા।।
હમરેં જાન સદા સિવ જોગી। અજ અનવદ્ય અકામ અભોગી।।
જૌં મૈં સિવ સેયે અસ જાની। પ્રીતિ સમેત કર્મ મન બાની।।
તૌ હમાર પન સુનહુ મુનીસા। કરિહહિં સત્ય કૃપાનિધિ ઈસા।।
તુમ્હ જો કહા હર જારેઉ મારા। સોઇ અતિ બડ઼ અબિબેકુ તુમ્હારા।।
તાત અનલ કર સહજ સુભાઊ। હિમ તેહિ નિકટ જાઇ નહિં કાઊ।।
ગએસમીપ સો અવસિ નસાઈ। અસિ મન્મથ મહેસ કી નાઈ।।

2.7.90

चौपाई
কোউ বিশ্রাম কি পাব তাত সহজ সংতোষ বিনু৷
চলৈ কি জল বিনু নাব কোটি জতন পচি পচি মরিঅ৷৷89খ৷৷
বিনু সংতোষ ন কাম নসাহীং৷ কাম অছত সুখ সপনেহুনাহীং৷৷
রাম ভজন বিনু মিটহিং কি কামা৷ থল বিহীন তরু কবহুকি জামা৷৷
বিনু বিগ্যান কি সমতা আবই৷ কোউ অবকাস কি নভ বিনু পাবই৷৷
শ্রদ্ধা বিনা ধর্ম নহিং হোঈ৷ বিনু মহি গংধ কি পাবই কোঈ৷৷
বিনু তপ তেজ কি কর বিস্তারা৷ জল বিনু রস কি হোই সংসারা৷৷
সীল কি মিল বিনু বুধ সেবকাঈ৷ জিমি বিনু তেজ ন রূপ গোসাঈ৷৷
নিজ সুখ বিনু মন হোই কি থীরা৷ পরস কি হোই বিহীন সমীরা৷৷

2.6.90

चौपाई
অস কহি রথ রঘুনাথ চলাবা৷ বিপ্র চরন পংকজ সিরু নাবা৷৷
তব লংকেস ক্রোধ উর ছাবা৷ গর্জত তর্জত সন্মুখ ধাবা৷৷
জীতেহু জে ভট সংজুগ মাহীং৷ সুনু তাপস মৈং তিন্হ সম নাহীং৷৷
রাবন নাম জগত জস জানা৷ লোকপ জাকেং বংদীখানা৷৷
খর দূষন বিরাধ তুম্হ মারা৷ বধেহু ব্যাধ ইব বালি বিচারা৷৷
নিসিচর নিকর সুভট সংঘারেহু৷ কুংভকরন ঘননাদহি মারেহু৷৷
আজু বযরু সবু লেউনিবাহী৷ জৌং রন ভূপ ভাজি নহিং জাহীং৷৷
আজু করউখলু কাল হবালে৷ পরেহু কঠিন রাবন কে পালে৷৷
সুনি দুর্বচন কালবস জানা৷ বিহি বচন কহ কৃপানিধানা৷৷

2.2.90

चौपाई
উঠে লখনু প্রভু সোবত জানী৷ কহি সচিবহি সোবন মৃদু বানী৷৷
কছুক দূর সজি বান সরাসন৷ জাগন লগে বৈঠি বীরাসন৷৷
গু বোলাই পাহরূ প্রতীতী৷ ঠাবঠা রাখে অতি প্রীতী৷৷
আপু লখন পহিং বৈঠেউ জাঈ৷ কটি ভাথী সর চাপ চঢ়াঈ৷৷
সোবত প্রভুহি নিহারি নিষাদূ৷ ভযউ প্রেম বস হ্দযবিষাদূ৷৷
তনু পুলকিত জলু লোচন বহঈ৷ বচন সপ্রেম লখন সন কহঈ৷৷
ভূপতি ভবন সুভাযসুহাবা৷ সুরপতি সদনু ন পটতর পাবা৷৷
মনিময রচিত চারু চৌবারে৷ জনু রতিপতি নিজ হাথ সারে৷৷

2.1.90

चौपाई
সুনি বোলীং মুসকাই ভবানী৷ উচিত কহেহু মুনিবর বিগ্যানী৷৷
তুম্হরেং জান কামু অব জারা৷ অব লগি সংভু রহে সবিকারা৷৷
হমরেং জান সদা সিব জোগী৷ অজ অনবদ্য অকাম অভোগী৷৷
জৌং মৈং সিব সেযে অস জানী৷ প্রীতি সমেত কর্ম মন বানী৷৷
তৌ হমার পন সুনহু মুনীসা৷ করিহহিং সত্য কৃপানিধি ঈসা৷৷
তুম্হ জো কহা হর জারেউ মারা৷ সোই অতি বড় অবিবেকু তুম্হারা৷৷
তাত অনল কর সহজ সুভাঊ৷ হিম তেহি নিকট জাই নহিং কাঊ৷৷
গএসমীপ সো অবসি নসাঈ৷ অসি মন্মথ মহেস কী নাঈ৷৷

1.7.90

चौपाई
बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं।।
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा।।
बिनु बिग्यान कि समता आवइ। कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ।।
श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई। बिनु महि गंध कि पावइ कोई।।
बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा। जल बिनु रस कि होइ संसारा।।
सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई। जिमि बिनु तेज न रूप गोसाई।।
निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा।।
कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा।।

1.6.90

चौपाई
अस कहि रथ रघुनाथ चलावा। बिप्र चरन पंकज सिरु नावा।।
तब लंकेस क्रोध उर छावा। गर्जत तर्जत सन्मुख धावा।।
जीतेहु जे भट संजुग माहीं। सुनु तापस मैं तिन्ह सम नाहीं।।
रावन नाम जगत जस जाना। लोकप जाकें बंदीखाना।।
खर दूषन बिराध तुम्ह मारा। बधेहु ब्याध इव बालि बिचारा।।
निसिचर निकर सुभट संघारेहु। कुंभकरन घननादहि मारेहु।।
आजु बयरु सबु लेउँ निबाही। जौं रन भूप भाजि नहिं जाहीं।।
आजु करउँ खलु काल हवाले। परेहु कठिन रावन के पाले।।
सुनि दुर्बचन कालबस जाना। बिहँसि बचन कह कृपानिधाना।।

1.2.90

चौपाई
उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी।।
कछुक दूर सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन।।
गुँह बोलाइ पाहरू प्रतीती। ठावँ ठाँव राखे अति प्रीती।।
आपु लखन पहिं बैठेउ जाई। कटि भाथी सर चाप चढ़ाई।।
सोवत प्रभुहि निहारि निषादू। भयउ प्रेम बस ह्दयँ बिषादू।।
तनु पुलकित जलु लोचन बहई। बचन सप्रेम लखन सन कहई।।
भूपति भवन सुभायँ सुहावा। सुरपति सदनु न पटतर पावा।।
मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।।

दोहा/सोरठा

1.1.90

चौपाई
सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी।।
तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा।।
हमरें जान सदा सिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी।।
जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी।।
तौ हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा।।
तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा।।
तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ।।
गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 90