1.2.126

चौपाई
देखि पाय मुनिराय तुम्हारे। भए सुकृत सब सुफल हमारे।।
अब जहँ राउर आयसु होई। मुनि उदबेगु न पावै कोई।।
मुनि तापस जिन्ह तें दुखु लहहीं। ते नरेस बिनु पावक दहहीं।।
मंगल मूल बिप्र परितोषू। दहइ कोटि कुल भूसुर रोषू।।
अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ। सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ।।
तहँ रचि रुचिर परन तृन साला। बासु करौ कछु काल कृपाला।।
सहज सरल सुनि रघुबर बानी। साधु साधु बोले मुनि ग्यानी।।
कस न कहहु अस रघुकुलकेतू। तुम्ह पालक संतत श्रुति सेतू।।

छंद
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी।
जो सृजति जगु पालति हरति रूख पाइ कृपानिधान की।।
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी।
सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी।।

दोहा/सोरठा
राम सरुप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर।
अबिगत अकथ अपार नेति नित निगम कह।।126।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: