1.2.323

चौपाई
सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे। निज निज काज पाइ पाइ सिख ओधे।।
पुनि सिख दीन्ह बोलि लघु भाई। सौंपी सकल मातु सेवकाई।।
भूसुर बोलि भरत कर जोरे। करि प्रनाम बय बिनय निहोरे।।
ऊँच नीच कारजु भल पोचू। आयसु देब न करब सँकोचू।।
परिजन पुरजन प्रजा बोलाए। समाधानु करि सुबस बसाए।।
सानुज गे गुर गेहँ बहोरी। करि दंडवत कहत कर जोरी।।
आयसु होइ त रहौं सनेमा। बोले मुनि तन पुलकि सपेमा।।
समुझव कहब करब तुम्ह जोई। धरम सारु जग होइहि सोई।।

दोहा/सोरठा
सुनि सिख पाइ असीस बड़ि गनक बोलि दिनु साधि।
सिंघासन प्रभु पादुका बैठारे निरुपाधि।।323।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: