छंद
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।। 
    मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन।।1।।
    अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर। भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।। 
    काम क्रोध मद गज पंचानन। बसहु निरंतर जन मन कानन।।2।।
    बिषय मनोरथ पुंज कंज बन। प्रबल तुषार उदार पार मन।। 
    भव बारिधि मंदर परमं दर। बारय तारय संसृति दुस्तर।।3।।
    स्याम गात राजीव बिलोचन। दीन बंधु प्रनतारति मोचन।। 
    अनुज जानकी सहित निरंतर। बसहु राम नृप मम उर अंतर।।4।।
    मुनि रंजन महि मंडल मंडन। तुलसिदास प्रभु त्रास बिखंडन।।5।।
दोहा/सोरठा
नाथ जबहिं कोसलपुरीं होइहि तिलक तुम्हार।  
    कृपासिंधु मैं आउब देखन चरित उदार।।115।।
