चौपाई
 तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ। निज मायाँ बसंत निरमयऊ।। 
 कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा। कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा।।
 चली सुहावनि त्रिबिध बयारी। काम कृसानु बढ़ावनिहारी।। 
 रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना।।
 करहिं गान बहु तान तरंगा। बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा।। 
 देखि सहाय मदन हरषाना। कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना।।
 काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी। निज भयँ डरेउ मनोभव पापी।। 
 सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु। बड़ रखवार रमापति जासू।।
दोहा/सोरठा
 सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन। 
 गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन।।126।।
