चौपाई
 मेघनाद के मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी।। 
 तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा।।
 इहाँ बिभीषन मंत्र बिचारा। सुनहु नाथ बल अतुल उदारा।। 
 मेघनाद मख करइ अपावन। खल मायावी देव सतावन।।
 जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि। नाथ बेगि पुनि जीति न जाइहि।। 
 सुनि रघुपति अतिसय सुख माना। बोले अंगदादि कपि नाना।।
 लछिमन संग जाहु सब भाई। करहु बिधंस जग्य कर जाई।। 
 तुम्ह लछिमन मारेहु रन ओही। देखि सभय सुर दुख अति मोही।।
 मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई। जेहिं छीजै निसिचर सुनु भाई।। 
 जामवंत सुग्रीव बिभीषन। सेन समेत रहेहु तीनिउ जन।।
 जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन। कटि निषंग कसि साजि सरासन।। 
 प्रभु प्रताप उर धरि रनधीरा। बोले घन इव गिरा गँभीरा।।
 जौं तेहि आजु बधें बिनु आवौं। तौ रघुपति सेवक न कहावौं।। 
 जौं सत संकर करहिं सहाई। तदपि हतउँ रघुबीर दोहाई।।
दोहा/सोरठा
रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत। 
 अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत।।75।।
