verse

1.6.92

चौपाई
चले बान सपच्छ जनु उरगा। प्रथमहिं हतेउ सारथी तुरगा।।
रथ बिभंजि हति केतु पताका। गर्जा अति अंतर बल थाका।।
तुरत आन रथ चढ़ि खिसिआना। अस्त्र सस्त्र छाँड़ेसि बिधि नाना।।
बिफल होहिं सब उद्यम ताके। जिमि परद्रोह निरत मनसा के।।
तब रावन दस सूल चलावा। बाजि चारि महि मारि गिरावा।।
तुरग उठाइ कोपि रघुनायक। खैंचि सरासन छाँड़े सायक।।
रावन सिर सरोज बनचारी। चलि रघुबीर सिलीमुख धारी।।
दस दस बान भाल दस मारे। निसरि गए चले रुधिर पनारे।।
स्त्रवत रुधिर धायउ बलवाना। प्रभु पुनि कृत धनु सर संधाना।।

1.6.91

चौपाई
कहि दुर्बचन क्रुद्ध दसकंधर। कुलिस समान लाग छाँड़ै सर।।
नानाकार सिलीमुख धाए। दिसि अरु बिदिस गगन महि छाए।।
पावक सर छाँड़ेउ रघुबीरा। छन महुँ जरे निसाचर तीरा।।
छाड़िसि तीब्र सक्ति खिसिआई। बान संग प्रभु फेरि चलाई।।
कोटिक चक्र त्रिसूल पबारै। बिनु प्रयास प्रभु काटि निवारै।।
निफल होहिं रावन सर कैसें। खल के सकल मनोरथ जैसें।।
तब सत बान सारथी मारेसि। परेउ भूमि जय राम पुकारेसि।।
राम कृपा करि सूत उठावा। तब प्रभु परम क्रोध कहुँ पावा।।

1.6.90

चौपाई
अस कहि रथ रघुनाथ चलावा। बिप्र चरन पंकज सिरु नावा।।
तब लंकेस क्रोध उर छावा। गर्जत तर्जत सन्मुख धावा।।
जीतेहु जे भट संजुग माहीं। सुनु तापस मैं तिन्ह सम नाहीं।।
रावन नाम जगत जस जाना। लोकप जाकें बंदीखाना।।
खर दूषन बिराध तुम्ह मारा। बधेहु ब्याध इव बालि बिचारा।।
निसिचर निकर सुभट संघारेहु। कुंभकरन घननादहि मारेहु।।
आजु बयरु सबु लेउँ निबाही। जौं रन भूप भाजि नहिं जाहीं।।
आजु करउँ खलु काल हवाले। परेहु कठिन रावन के पाले।।
सुनि दुर्बचन कालबस जाना। बिहँसि बचन कह कृपानिधाना।।

1.6.89

चौपाई
देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा।।
सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा।।
तेज पुंज रथ दिब्य अनूपा। हरषि चढ़े कोसलपुर भूपा।।
चंचल तुरग मनोहर चारी। अजर अमर मन सम गतिकारी।।
रथारूढ़ रघुनाथहि देखी। धाए कपि बलु पाइ बिसेषी।।
सही न जाइ कपिन्ह कै मारी। तब रावन माया बिस्तारी।।
सो माया रघुबीरहि बाँची। लछिमन कपिन्ह सो मानी साँची।।
देखी कपिन्ह निसाचर अनी। अनुज सहित बहु कोसलधनी।।

1.6.88

चौपाई
मज्जहि भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला।।
काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं।।
एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई। सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई।।
कहँरत भट घायल तट गिरे। जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे।।
खैंचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए।।
बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं।।
जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं। भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं।।
भट कपाल करताल बजावहिं। चामुंडा नाना बिधि गावहिं।।
जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं।।

1.6.87

चौपाई
एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी।
देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा।।
बहु कृपान तरवारि चमंकहिं। जनु दहँ दिसि दामिनीं दमंकहिं।।
गज रथ तुरग चिकार कठोरा। गर्जहिं मनहुँ बलाहक घोरा।।
कपि लंगूर बिपुल नभ छाए। मनहुँ इंद्रधनु उए सुहाए।।
उठइ धूरि मानहुँ जलधारा। बान बुंद भै बृष्टि अपारा।।
दुहुँ दिसि पर्बत करहिं प्रहारा। बज्रपात जनु बारहिं बारा।।
रघुपति कोपि बान झरि लाई। घायल भै निसिचर समुदाई।।
लागत बान बीर चिक्करहीं। घुर्मि घुर्मि जहँ तहँ महि परहीं।।

1.6.86

चौपाई
चलत होहिं अति असुभ भयंकर। बैठहिं गीध उड़ाइ सिरन्ह पर।।
भयउ कालबस काहु न माना। कहेसि बजावहु जुद्ध निसाना।।
चली तमीचर अनी अपारा। बहु गज रथ पदाति असवारा।।
प्रभु सन्मुख धाए खल कैंसें। सलभ समूह अनल कहँ जैंसें।।
इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही। दारुन बिपति हमहि एहिं दीन्ही।।
अब जनि राम खेलावहु एही। अतिसय दुखित होति बैदेही।।
देव बचन सुनि प्रभु मुसकाना। उठि रघुबीर सुधारे बाना।
जटा जूट दृढ़ बाँधै माथे। सोहहिं सुमन बीच बिच गाथे।।
अरुन नयन बारिद तनु स्यामा। अखिल लोक लोचनाभिरामा।।

1.6.85

चौपाई
इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई।।
नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा।।
पठवहु नाथ बेगि भट बंदर। करहिं बिधंस आव दसकंधर।।
प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए।।
कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका। पैठे रावन भवन असंका।।
जग्य करत जबहीं सो देखा। सकल कपिन्ह भा क्रोध बिसेषा।।
रन ते निलज भाजि गृह आवा। इहाँ आइ बक ध्यान लगावा।।
अस कहि अंगद मारा लाता। चितव न सठ स्वारथ मन राता।।

1.6.84

चौपाई
जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा।।
मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा।।
मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा।।
धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही।।
अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो।।
कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता।।
सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला।।
पुनि कोदंड बान गहि धाए। रिपु सन्मुख अति आतुर आए।।

1.6.83

चौपाई
रे खल का मारसि कपि भालू। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू।।
खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती। आजु निपाति जुड़ावउँ छाती।।
अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा। लछिमन किए सकल सत खंडा।।
कोटिन्ह आयुध रावन डारे। तिल प्रवान करि काटि निवारे।।
पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा। स्यंदनु भंजि सारथी मारा।।
सत सत सर मारे दस भाला। गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला।।
पुनि सत सर मारा उर माहीं। परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं।।
उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी। छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी।।

Pages

Subscribe to RSS - verse