चौपाई
चले बान सपच्छ जनु उरगा। प्रथमहिं हतेउ सारथी तुरगा।।
रथ बिभंजि हति केतु पताका। गर्जा अति अंतर बल थाका।।
तुरत आन रथ चढ़ि खिसिआना। अस्त्र सस्त्र छाँड़ेसि बिधि नाना।।
बिफल होहिं सब उद्यम ताके। जिमि परद्रोह निरत मनसा के।।
तब रावन दस सूल चलावा। बाजि चारि महि मारि गिरावा।।
तुरग उठाइ कोपि रघुनायक। खैंचि सरासन छाँड़े सायक।।
रावन सिर सरोज बनचारी। चलि रघुबीर सिलीमुख धारी।।
दस दस बान भाल दस मारे। निसरि गए चले रुधिर पनारे।।
स्त्रवत रुधिर धायउ बलवाना। प्रभु पुनि कृत धनु सर संधाना।।